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27 August 2015

संचार उपग्रह जीसैट-6 का सफल प्रक्षेपण

इसरो जीसैट-6 उपग्रह

श्रीहरिकोटा(आंध्रप्रदेश): भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) ने आज देश के नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-6 का सफल प्रक्षेपण किया. इसका प्रक्षेपण जीएसएलवी-डी6 रॉकेट के जरिए किया गया जो स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से लैस है. यह दूसरा मौका है जब भारत ने सफलतापूर्वक स्वदेश में ही विकसित क्रायोजेनिक इंजन के साथ यह प्रक्षेपण किया है. इसके पहले पांच जनवरी 2014 को इसरो द्वारा जीएसएलवी-डी5 का प्रक्षेपण किया गया था. अंतरिक्ष यान जीएसएलवी-डी6 ने अत्याधुनिक सैनिक संचार उपग्रह जीसैट-6 को लेकर गुरूवार शाम 4.52 मिनट पर सतीष धवन अंतरिक्ष केन्द्र से सफल उड़ान भरी. इसके लिए बुधवार सुबह से ही उलटी गिनती शुरू कर दी गई थी. अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस की अंतरिक्ष एजेंसियों के बाद इसरो दुनिया की छठी अंतरिक्ष एजेंसी है जिसने स्वदेशी क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है.

सामरिक उपयोगकर्ताओं के लिए यह उपग्रह एस-बैंड में पांच स्पॉट बीम और सी-बैंड में एक राष्ट्रीय बीम से लैस है. घनाकार उपग्रह का लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान 2,117 किलोग्राम है. प्रणोदकों का वजन 1,132 किलोग्राम और उपग्रह का शुष्क द्रव्यमान 985 किलोग्राम है. 49.1 मीटर लंबे व 416 किलो वजनी रॉकेट ने जीसैट-6 संचार उपग्रह को लगभग 17 मिनट में भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा तक पहुंचा दिया. यह पांचवीं बार है कि इसरो ने दो टन से अधिक भार के उपग्रह का प्रक्षेपण जीएसएलवी से किया.

इस उपग्रह को कक्षा में 19.95 के झुकाव पर कुछ इस तरह से स्थापित किया गया है कि पृथ्वी से इसकी सबसे कम दूरी 170 किलोमीटर और सबसे अधिक दूरी 35,975 किलोमीटर रहेगी. सूत्रों ने बताया कि अत्यधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-6 देश का 25वां भूस्थिर संचार उपग्रह है और जीसैट श्रंखला का 12 उपग्रह है. यह उपग्रह देश मे एस-बैंड की संचार सुविधा मुहैया कराएगा. जीटीओ मे पहुंचने के बाद जीसैट-6 अंतिम भूस्थिर कक्षा में पहुंचने के लिए अपने ही प्रणोदक का इस्तेमाल करेगा और 83 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) के वैज्ञानिकों को भेजे बधाई संदेश में कहा, एक बार फिर हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में बुलंदी के झंडे गाड़े. इसरो को जीसैट-6 के सफल प्रक्षेपण के लिए बधाई. जीएसएलवी-डी6 की सफल उड़ान के बाद जोश और खुशी से लबरेज वैज्ञानिकों ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) के प्रमुख ए एस किरण कुमार को गले लगाकर और हाथ मिलाकर बधाई दी.

अभियान के निदेशक उमा महेश्वरन ने कहा कि स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन चलित जीएसएलवी की सफल उड़ान से साबित कर दिया है कि यह क्रियाशील प्रक्षेपण यान बन गया है. इसरो प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा कि इस अभियान की सफलता ने साबित कर दिया है कि भारत अब जटिल क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल कर चुका है. हमारी टीम ने इस क्रायोजेनिक इंजन को विकसित करने में कड़ी मेहनत की है इसके साथ ही हमने दिखाया कि जनवरी 2014 में जो कुछ हुआ था वह अनायास ही मिली सफलता नहीं थी, बल्कि पूरी टीम ने स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के लिए पुरजोर मेहनत की थी, अब क्रायोजेनिक की बहुत सारी जटिलताओं की समझ विकसित हुई है. कुमार के अध्यक्ष पद संभालने के बाद यह पहली बार है जब इसरो द्वारा जीएसएलवी का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया है. अब भारत स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन की मदद से दो टन वजनी उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर सकता है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के वैज्ञानिकों को क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी लाने में दो दशक का समय लगा है और इसके विकास पर 400 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

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