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11 November 2015

टीपू सुल्तान जयंती पर वीएचपी नेता मौत

टीपू सुल्तान जयंती एक मौत

बेंगलुरू: कर्नाटक के कोडगु में 18वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान की जयंती कार्यक्रम के विरोध प्रदर्शन के दौरान मंगलवार को एक व्यक्ति की मौत हो गई. कर्नाटक सरकार मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की 265वीं जयंती मना रही है. जयंती पर जमकर बवाल हुआ. सुबह दो पक्षों के बीच हुई हिंसक झड़प में वीएचपी के जिला सचिव कुटप्पा की मौत हो गई, जबकि कई घायल हैं. बीजेपी से जुड़े संगठन आरएसएस-वीएचपी इसका विरोध कर रहे हैं. इस उत्सव का भाजपा ने बहिष्कार किया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है वह इस कार्यक्रम से जुड़े सभी विरोधों का समर्थन करेगी. पूरे कोडागू जिले में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है और हालात को नियंत्रण में लाने के लिए अतिरिक्त बलों को इलाके में भेजा गया.

प्रदर्शनकारियों ने पुलिस और आयोजन स्थल की तरफ पथराव शुरु कर दिया. जिससे वहां अफरा तफरा मच गई. पथराव में विहिप के स्थानीय संगठन मंत्री को चोट लग गई. गंभीर हालत देखते हुए उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि कुछ सांप्रदायिक तत्व इस कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं लेकिन कई लोग इसके समर्थन में भी हैं. पुलिस का कहना है कि बेंगलुरू से 250 किमी दूर कोडागू में एक दूसरे पर पत्थर फेंकने के दौरान इस आदमी की दीवार से गिरने पर मौत हो गई. शख्स की मौत लाठीचार्ज में नहीं हुई. टीपू सुल्तान एक बेहद सुधारवादी और धर्मनिरपेक्ष राजा थे. मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने 22 दिसंबर को घोषणा की थी कि सरकार ने टीपू जयंती मनाने का फैसला किया है. भाजपा और कुछ अन्य संगठनों ने सरकार की ओर से पहली बार टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के फैसले के विरोध में बंद का आह्वान किया था.

कर्नाटक बीजेपी के प्रवक्ता एस. नारायण ने चैनलों से बातचीत में आरोप लगाया है कि शांति से विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं पर हमला हुआ. पुलिस ने लाठीचार्ज किया. कार्यकर्त्ता सिर्फ काले झंडे दिखा रहे थे.

टीपू सुल्तान ने 1782 से 1799 तक मैसूर पर शासन किया था. आलोचकों द्वारा उन पर हिंदुओं के धर्मांतरण और ईसाइयों पर अत्याचार करने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन कई लोग उन्हें उस बहादुर की तरह देखते हैं जो अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े थे. उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का घोर शत्रु माना जाता था. वह मई 1799 में ब्रिटिश फौज के हमले से अपने श्रीरंगपटना किले की रक्षा करते हुए मारे गए थे.

विरोध के बावजूद कांग्रेस सरकार ने इस साल से मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के अपने फैसले को वापिस लेने से इंकार कर दिया है.

वहीं कांग्रेस का कहना है कि टीपू ऐसे शख्स थे जो सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने और नष्ट हो चुके मंदिरों के पुनर्निर्माण में काफी आगे रहे हैं. इतिहासविद् नरसिम्हा का कहना है कि टीपू सुल्तान अपने आत्म-सम्मान और राष्ट्रसेवा के लिए काफी जाने जाते थे.

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